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मेहनत का फल

मत दो ऐसे संस्कार, भ्रामक है ये शिक्षा 

की कर्म किए जा फल की रखना ना  कोई इक्छा 

कर्म किया, फल का मिलना तो स्वाभाविक है  

हक मांगा है , माँगी है ना कोई भिक्षा 

मेहनत का फल सही मिला होता तो होता कैसा 

मेहनतकश के हाथों में होता पैसा

साहूकार और ज़मींदार भी मेहनत करते 

सब मेहनतकश एक कुँवे से पानी भरते  

पर यहाँ बहा रक्खी है तुमने उल्टी गंगा 

मेहनतकश ही घूम रहा है भूँखा नंगा 

चंद चुनिंदा चंपू हैं रेवड़िया खाते 

जिसको अपने अपनों को कुछ अंधे बाटे  

सुनो तात अब ये निर्णय भी लेना होगा 

मेहनत कश को मेहनत का फल देना होगा