तहल्का के पत्रकारों ने किया बड़ा पर्दाफ़ाश है
हर तरफ मखौल है, हर तरफ परिहासस है
एक वर्ग की चिंता है की नेता खाता क्यों है
तो दूसरे की की खाता है तो पकड़ा जाता क्यों है
एक वर्ग का मानना है की ये सरकार हर फ्रन्ट पर फेल है
आखिर सफाई से खाना भी कोई हंसी खेल है
अर्थक्षक्षत्री दुखी हैं की भारत फिर से गरीबी रेखा के नीचे जा रहा है
सताधारी सम्मानित पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष सिर्फ 1 लाख खा रहा है
अर्रे डॉलर वाले देशों में तो इतना चपरासी पा ता है
ये अलग बात है की वो इसके लिए अपना पसीना बहाता है
समाजशास्त्री खिन्न है की आजादी के तमाम सालों के बाद भी दलित का उत्पीड़न हो रहा है
लाख रुपए के लिए एक सम्मानित दलित अपनी अस्मितया खो रहा है
इतिहासकारों को भी इस घटना की गंभीरता का एहसास है
क्योंकि घूस लेने देने में भारत का एक गौरवशाली इतिहास है
देखिए तो 50 सालों में कितना परिपक्व हुआ है हमारा लोकतंत्र
अब घूस लेना सेवा है और उसे पकड़वाना एक षड्यन्त्र
तहलका