ना जाने क्यों आज आज़ादी के ७९ सालों के महत्पूर्ण अवसर पर मैं उन आवारा कुत्तों सा महसूस कर रहा हूँ जो सर्वोच्य न्यायालय के आदेश का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। हालांकि मेरे अंदर अवरर्गी जैसी कोई बात नहीं है यूँ तो कुत्ता गुणों का भी अभाव है। जैसे की मैं मैं वफादार नहीं हूँ ये नहीं की मैं होना नहीं चाहता हूँ पर क्योंकि तम्माम भारतीयों की तरह मुझे भी ये ज्ञान नहीं है की किसका वफ़ादार होना है। कारण की मैं देश के मिडल क्लास की तरह ना ही सरकार की चलाई जा रही स्कीमैं मुझे पाल रही हैं ना सरकार के दिए लाइसेंस, परमिट ठेके और ना ही भारतीय बैंकों से भारी निवेश करा कर मुझे फ़रार होने का अवसर प्राप्त हुआ है।
यूँ तो दुम हिलाने के लिए मैं मानसिक रूप से तयार हूँ पर मुझे रश्क होता है उन कुत्तों से जिनके सर पर अदानी अंबानी का वरद हस्त है, गले मैं पड़ा सुंदर पट्टा भी ईर्ष्या का विषय है हालांकि संतोष उस पट्टे से बँधी चैन को देख कर जरूर होता है।
मुझे उन गोदी कुत्तों (lap dogs) को देख कर भी बड़ा दर्द होता है जो गोदी बनकर गोदी का कम्फर्ट उठा रहें हैं और सरकार द्वारा दिए गए बिस्किट चबा रहें हैं जिन्हें कभी कदार मुख चाटने का अवसर भी मिलता है हालाँकि संतोष उनकी तलवे चाटने की मजबूरी पर जरूर होता है।
मनुष्य की कुत्तों के प्रति नीयत साफ़ नहीं है उसने अपने भौकने के लिए तो तमाम प्लार्टफ़ॉर्म (सोशल मीडिया) बना लिए हैं जिन पर वो जम कर भौकते है पर हमारे भोकने पर प्रतिबंध लगाना चाहता है। और उसे कारण बना कर हमें शेल्टर भिजवाना चाहता है।
हमरे काटने का भी बढ़ चढ़ कर भ्रामक प्रचार हो रहा है जबकि मनुष्य बेधड़क हो कर सब को काट रहा है। संस्थाएं भी इस काटन प्रक्रिया में शामिल हैं अब इलेक्शन कमीशन को ही ले लीजिए एक झटके में लाखों लोगों का वोट देने का अधिकार काट लिया, विपक्ष खाली हमारी तरह भौक रहा है। परिस्थिति ऐसी है की सरकार किसी गाड़ी की तरह बेझिझक भाग रही है और विपक्ष उसके पीछे बस भॉ भौं करता दौड़ रहा है।।
मैं उन सेलिब्रिशन से भी कहना चाहता हूँ जो हमारे पक्ष में आवाज़ उठा रहें है की सिर्फ़ सोशल मीडिया पर भौकने से हमारी समस्या का हल नहीं होगा, डॉग शेल्टर बनाने के लिए चंदा दे कर अपने कुत्ता प्रेम का प्रदर्शन करें। वरना हम हर सड़क हर गली में स्वर्गीय राज कप्पुर जी का गाना भौकांयेगे की गर्दिश में हूँ आसमान का तारा हूँ आवारा हूँ