लोकमान्यता अनुसार महाभारत काल में इन्द्रप्रस्थ (वर्तमान दिल्ली )के राजा युधिष्ठिर ने यह ग्राम अपने गुरु द्रोणाचार्य को दिया था। उनके नाम पर ही इसे गुरुग्राम कहा जाने लगा, जो कालांतर में बदलकर गुड़गांव हो गया। महान गुरु भक्त एकलव्य का गुड़गांव से गहरा संबंध है। इस स्थान पर ही गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से अंगूठा मांगा था।
गुरुग्राम एक कृषि प्रधान गाँव होता था। जो आर्थिक विकास की धारा में कार मैन्युफ़ैक्चरिंग से शैल हुआ और फिर 90 के दशक में IT क्रांति के बाद ये मिलेनियम सिटी की तरह ब्रांड किया गया और neo rich का फेवरेट डेस्टिनेशन हो गया। फिर क्या था गुड़गांव के दिन बहुरे और सम्पत्ति के दाम दिन दूनी और रात चौगनी रफ़्तार से बढ़ने लगे, और बढ़ते जा रहे हैं।
मगर पिछले दिनों आई बरसात ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है की कहीं ये प्रचार भ्रमित करनेवाला तो नहीं था। और होना भी चाहिए कहते हैं जितनी चादर हो उतने पाव फैलाओ पर यहाँ तो जरा सी बरसात हुई और घर से निकलते ही कुछ दूर चलते ही सड़क पे बना है तलाव। घंटों के जाम,
ऐसे में लोगों का जेब काट गई सोचना कोई अनहोनी नहीं असल में यहाँ के लोग भ्रामक प्रचार के प्रकोप को जानते हैं। आख़िर कार गुरुदेव द्रोणाचार्य ने तो अपनी जान भ्रामक प्रचार के चलते गँवाई।युधिस्तर के काल में अश्वस्थामा हतो हता सुनते शास्त्र रख दिए। नरों कुंज़रो तक आते आते शंख बज गया और भ्रामक प्रचार की वजह से उनका सर काटा और अब लोगों की जेब काट रही है। गुरुग्राम के फ्लैटों के अंदर की बाहर सबने देखी और बाहर की बाढ़ या यूँ कहें जनरल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी किसी ने नहीं देखी।
अब तो हालात ये हैं कि लोग सोच रहे हैं कि स्लम से उठ कर आये मिलियनेयर्स पर तो फ़िल्म बन चुकी स्लम में उठ कर जाने वालों पर फ़िल्म कब बनेगी