युवा को क्या हुआ
व्यंग लोकप्रिय विचार की धारा के विपरीत भी जाने का दुस्साहस करता है तो आज जो विषय मैंने लिखने के लिए चुना है वो प्रचलित भावना के विरुद्ध है
नेपाल में जो हो रहा है, बांग्लादेश में जो हो चुका है और श्री लंका ने जिसकी झलक देखी है वो एक लिहाज़ से तो अच्छा है पर कई मानकों पर गर्व करने की बात बिल्कुल नहीं है।
मैं पहले ही एक डिस्क्लेमर लगा दूँ। मैं व्यक्तिगत रूप से इस २० ईयर ओल्ड सिंड्रोम से त्रस्त हूँ अत: मेरे लिखे को थोड़े नमक के साथ चखियेगा।
मीडिया में अक्सर सवाल उठाया जाता है – how will २० year old react to it। हर चीज़ मानो उनके स्वादानुसार ही रचनी है। जैसे उनके विचार विचार हैं बाक़ी सबके आंचार।
और अब देखिए कैसा उत्पात मचा रखा है इस बीस सालिया भीड़ ने, नेपाल में।
बेईमान सरकार को हटाने वाले दुकान लूटते और पब्लिक प्रॉपर्टी को आग लगते पाए गए। मैं सत्तारूढ़ ८० सालियों का समर्थक नहीं हूँ वरन् उनको हटाने के पक्ष में हूँ पर एक व्यावहारिक विकल्प बनने के पश्चात और उस विकल्प की शक्ल क्या होगी इसको विचार करने की जिम्मेदारी भी २० सालिया गैंग को लेनी होगी।
व्यवस्था को व्यवस्था से बदला जा सकता है, अराजकता से नहीं।
ये बीस सालिये जिम्मेदारी उठाने से हमेशा बचते पाए जाएँगे।
अब शादी को ही ले लीजिए ये बीस सालिये तीस सालिये होने से पहले शादी करने के नाम से ही भागते हैं अरे मर्द के सॉरी मर्द और औरत के बच्चे हैं तो हम्मारी तरह शादी के ३० साल की वर्षगाँठ कहाँ माननी है के दबाव को महसूस कर के दिखाएँ पर नहीं वो तो लिव इन लिव आउट विथ बेनेफिट्स आदि तमाम नए फार्मूले ट्राय कर रहे हैं। इन्हें क्या पता की शादी एक ऐसा बोझ है जिसे burden of the cross की तरह ढोने में ही मोक्ष है। इससे दुनियाबी चीजों से इंसान को विरक्ति हो जाती है अत वो भगवत भजन में रस तलाश कर लेता है। जीवन की इस महत्वपूर्ण व्यवस्था को एक्सपीरियंस किए बिना एक जिम्मेदार नागरिक बनना मुश्किल है।
मैं आपको बता दूँ ये animal फ़िल्म के हिट होए के पीछे भी इस बीस सालियों का हाथ है। और तम्माम अतरंगी गानों के पीछे भी। ये बीस सालिये हर तरफ़ टिड्डी दल की तरह फ़ैल चुके हैं। इनके प्रकोप से बचने के उपाय चीर्ण होते जा रहें हैं।
बिना जिम्मेदारियों की समझ होने पर अधिकारों की माँग न्याय संगत नहीं है।इस जनरेशन के लिए तो और भी नहीं क्योंकि हम्मड़ी जनरेशन जब २० साल के दशक में आई थी तो हम्मे कहा जा रहा था कि अभिवाहकों की सुनो सो हम सुनते रहे जब हमने नेक्स्ट जनरेशन को २० साल का बना दिया तो रूल चेंज हो गया और हनमे कहा गया की बच्चों की मानो।
मेरे कहने का तात्पर्य ये है कि अगर इन बीस सालियों को जिम्मेदारी उठाए बिना अधिकार देने की आदत डाल दी तो सामाजिक और राजनैतिक अराजकता के लिए तयार रहना चाहिए।