बरसों बाद कल मेरा पुनः काशी आना हुआ। अद्भुत शहर है ये और अद्भुत हैं काशी के वासी। उतना ही ठहरा हुआ है जितना बदल रहा है काशी।
बाज़ार बड़े हो गए हैं और सड़कें छोटी। रांड, सांड, सिढ़िऊ, संन्यासी के शहर में मेट्रो, ट्राम और फ्लाइओवर्स बनाना तो मुश्किल था तो देश में लोकतंत्र के सबसे बड़े जादूगर ने यहाँ रोप ट्रिक का इस्तेमाल किया और काशी को दे दी रोपवे। जिसका निर्माण चल रहा है जिसके चलते काशी तमाम लोगों के घर दुकाने और दफ्तर तोड़ दिए गए। काशी की पहचान समझे जाने वाले मशहूर चाट काशी की चाट बंद मिली खैर ऐसी छोटी मोटी कुर्बानिया तो देनी ही पड़ती हैं विकास जो २०१४ में जन्मा था के किशोर अवस्था में प्रवेश पाने के लिए।।
व्यस्त बाज़ार में नज़र टिकी एक बड़ी दुकान के चमकदार साइन बोर्ड पे। ‘बवाल’ बड़े बड़े अक्षरों में अंकित । ये किसी ओटीटी सीरीज का शीर्षकि होने के लिए उपयुक्त नाम पर दुकान का नाम बवाल। बवाल का शाब्दिक अर्थ है बखेड़ा, झंझट, या विवाद खड़ा करना इत्यादि जिसका दूर दूर तक कपड़ों की ख़रीद फ़रोश्त से कोई लेना देना है। ब्रांडिंग भी अद्भुत विधा है अपने पे आ जाए तो ज़हर को अमृत से ज़्यादा लोक प्रिय बना दे।
खैर मैं दोबारा तब चौका जब होटल के बाहर ये सूचना का पोस्टर देखा जिस पर लिखा हुआ था होटल में हथियार ले जाना मना है। सोचा, होटल में हथियार कौन ले कर जाता है, पर बनारस में ये सूचना देना लाजिमी है जहाँ बवाल फैशन में हो वहाँ असलहा (कट्टा इत्यादि) वग़हरा तो फैशन एक्सेशरी में होंगे ही। उन्हें लेकर चलना काशी की सामाजिक व्यवस्था में आपको अग्रिम श्रेणी में खड़ा करता है।
चलिए ऐसे नाम, पोस्टर और दीवार पर लिखे विभिन नारे तो ध्यान आकर्षित करते हैं हीं , पर उससे भी जायदा सोचने को मजबूर करती है बाबा विश्वनाथ के मंदिर की यात्रा। सुबह ३।३० बजे पौ फटने के पहले लोग लाइन लगा लेते हैं मगला आरती को, प्रभु के जागने का समय है वो। सुबह की इस आरती के साथ ही बनारस के देव महादेव का जागरण होता है और उन्हें स्नान कराया जाता है। ४ बजे से लोग लाइन में जमा हो जातें हैं वीआईपी के नाम पर आपको एक व्यक्ति मिल जाता है जो बाबा के प्रताप की विस्तृत चर्चा करता हैं। लोग लाइन लगातें है और भक्त ऊन्हे भगवान की महिमा के किस्से सुनातें हैं हर हर महादेव के उद्घोष से वातावरण कौंध उठता है भगवान को भक्त और भक्तों को दक्षिणना मिल जाती है। और ये सब देती हैं जनता। आपको ये अपनी लोकतासांत्रिक व्यवथा जैसा नहीं लगता है, जहाँ लीडर भगवान, राजनैतिक कार्यकर्ता भक्त और जनता वो सब्जेक्ट जो इस व्यवथा को अपने खर्चे से चलाती है और कुछ नहीं पाती है। जो कुछ मिल जाता है उसे प्रभ्गु की दया से मिला प्रसाद समझ कर शिरोधारय कर लेती है और पुनः किसी और देव के सामने लाइन लगा लेती है। १४० + करोड़ देशवासियों के लिए ३३ कारोंड देवी देवता। ये है भगवानी करण का राजनैतिक करण, या यूँ कहें कि राजनीति का भगवानी करण।