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मझधार

गो आज हम दरिया के किनारे होते 

ठहराव होता, शिथिलता होती, और मन चाहे नज़ारे होते।

एक खूटे से बंधी नाव हमारी होती, हम कुछ रस्सियों के सहारे होते।

जो डूबा दें या उतरा दें, हमसे बहुत  दूर वो धारे होते 

पर गर ज़िंदगी, दरिया में बहता पानी है 

तो मौज मझधार में लेने, की हमने ठानी है 

तेज रफ्तार है, थपेड़े हैं, रास्ते भी बड़े ठेड़े मेढ़े हैं 

कौतूहल चारों तरफ़ बिफरा है, डूब जाने का भी, मेरे भाई, बड़ा ख़तरा है 

दोस्त कहते हैं किनारे  लग जा, एक खूटे के सहारे लग जा 

पर हमने कहाँ लोगों की, कभी मानी है 

मौज मझधार में  लेने की  हमने ठानी है

कई बार हमने किनारा भी किया 

मेरी साँसों ने लम्हों का सहारा भी लिया 

फिर किसी धार ने मजधार की पुकारा हमको

तब  कहाँ रुकना था बोलो गँवारा हमकों 

सुख चैन सुकून छोड़ा, रूख मॉड दिया 

ख़ुद से किया था वादा वो भी तोड़ दिया     

ज़िंदगी ऐसे ही जीनी हमने जानी है 

मौज मजधार में लेने की हमने ठानी है 

हमने कहाँ लोगों की, कभी मानी है 

 गर ज़िंदगी दरिया में बहता पानी है 

तो मौज मझधार में लेने की हमने ठानी है